Case #26 - 26 देना और लेना
ट्रेसी अकेले ही घूमना पसन्द करती थी । उसे एक स्वतंत्र औरत की तरह रहना पसन्द था । अपने घर कुछ हफ्तों में कुछ दिनों के लिये ही जाती थी, और उसे यह ठीक लगता था । शहर में उसका अपना घर था । उसने कहा यह उसके पति को यह ठीक लगता था क्योंकि उसका स्तर ऊँचा था, और निश्चय ही उनके बीच बहस होगी ।
उसे लगता था कि उसका जीवन उसका अपना था । और, अब चूंकि उसका बेटा बड़ा हो चुका था, उसे पारिवारिक जिम्मेदारियों को निभाने की जरूरत नहीं थी । वह अपनी जीवनशैली और अपने काम से प्यार करती थी । फिर भी, उसकी चिंता ये थी कि जब वो घर में होती थी तो कुछ समय बाद उसे घबराहट होने लगती थी ।
गहराई से जानने के लिये, मैंने उससे उसके माता-पिता के बारे में पूछा । जब वो बड़ी हो रही थी, उसको कुछ हद तक स्वतंत्रता मिली हुई थी – उसकी माँ काफी सारे बच्चों में व्यस्त रहती थी – उसके पिता उसके साथ लड़कों जैसा व्यवहार करते थे और उसे कुछ विशेषाधिकार दे रखे थे – हालांकि वो उससे प्यार भी करते थे । फिर भी, जब उस पर ध्यान दिया जाता था तो ये ध्यान कुछ कर दिखाने के लिये होता था, या फिर एक अच्छा बच्चा बनने के लिये । इस सब की जड़ में यह था कि या तो यह हो या वह हो । या तो उस पर ध्यान दिया जाता था या वह स्वतन्त्र होती थी । लेकिन इसके बीच का कोई रास्ता नहीं था । उसके बाद, मैंने यह जानने के लिये कि उसके पति के साथ यह कैसा था, एक प्रयोग का सुझाव दिया । हम एक-दूसरे के सामने खड़े हुए । मुड़े हुए हाथ ऊपर करने का अर्थ था कि ध्यान आकर्षित करना चाहते थे । हाथ पीछे की तरफ करने का अर्थ था स्वतन्त्रता चाहते थे ।
वह एकदम से परेशान हो गई । उसने कहा वह ध्यान आकर्षित करने की मुद्रा में नहीं रहना चाहती थी । इससे उस पर बहुत दबाव पड़ता था और वह घबरा जाती थी । मैंने उससे पूछा कि वो स्वयँ कितनी बार महसूस करती थी कि उसे उस मुद्रा में रहना चाहिये, स्वाभाविकत: अपने पति के साथ । उसने कहा उसे जितनी उसके पास स्वतन्त्रता थी उससे ज्यादा स्वतन्त्रता चाहिये थी । मैंने पूछा बिना किसी कर्तव्य पालन की जिम्मेदारी के कितनी बार । उसने कहा- साल में दो बार अपने घर पर और बाकी समय उसका अपना हो । मेरे संबंध का यह नमूना नहीं था, लेकिन मैं यह स्वीकार कर सकता था कि यह नमूना उसका होगा।
इसलिये, इस आधार पर हम आगे बढ़े । वह ध्यान आकर्षित कराने की मुद्रा में थोड़ी देर ही रहना चाहती थी । फिर उसके बाद स्वतन्त्रता पाने की मुद्रा में चली गई । उसने कहा कि उसको ध्यान आकर्षित करने की मुद्रा में बड़ा असुविधाजनक लगता था । इसलिये, मैंने स्थिति को उल्टा कर दिया । मैंने पति का किरदार निभाया और हाथों को ध्यान आकर्षित करने की मुद्रा में ले आया । उसने एकदम बड़े जोर से पीछे हटना शुरू कर दिया । उसे बहुत गुस्सा आया । उसको लगा जब भी वह अपने पति के साथ होती थी तो वह उससे कुछ न कुछ चाहता था, और यह कि वह हमेशा ही उसको देती आई थी पर उसे कभी कुछ वापिस नहीं मिला था । इसलिये, उसका गुस्सा उभर कर आया और यह घटनाचक्र स्पष्ट हो गया । वो दूर हुई, उसकी जरूरतें और बढ़ गईं, वह और दूर हो गई, इत्यादि ।
इसलिये, मैंने ये सुझाव दिया कि हम हाथ खड़े करने की एक और मुद्रा अपने प्रयोग में जोड़ लें : देने वाली मुद्रा । स्पष्ट रुप से उसके पास देने के लिये कुछ और नहीं था । लेकिन मैंने उसके पति के रूप में देने वाली मुद्रा अपना ली और उसे कहा कि वह ध्यान आकर्षित करने वाली/प्राप्त करने वाली मुद्रा में आ जाये । इससे भी उसको बहुत 'शिकायत' हुई । उसे लगता था कि वास्तव में उसने अपने पति से कुछ पाया नहीं, और उसे केवल देते हुए ही काफी साल बीत गये थे । फिर भी, मैंने उसे वर्तमान में आने के लिये कहा और एक बार अपना गुस्सा दिखा कर उस मुद्रा का अनुभव करे जिसमें दिया जा रहा हो । वह मान गई और लेने करने से उस पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ा । परन्तु, वह फिर असहज महसूस करने लगी – लेने की कीमत उसे देकर चुकानी पड़ेगी, जिससे वह डरती थी ।
इसलिये, इस घटनाचक्र का गहरा पक्ष उजागर हो गया । इसलिये, मैंने उसे एक बार प्राप्त करने और एक बार देने के लिये कहा । मैं उसे दूँगा और वह लेगी, और जैसे ही वह असहज महसूस करेगी, हम मुद्रा को बदल लेंगें । वह अपना उधार चुकाने के लिये मुझे वापस दे सकती थी (और मैं प्राप्त करूँगा) । लेकिन तब तक ही जब तक वह सहज रह सकती थी । उसकी गति बहुत तेज थी, एक मुद्रा में वह केवल कुछ ही सैकेंड के लिये रहती थी । परन्तु, इससे वह बहुत ही सहज महसूस कर रही थी, और उसे लगा कि हम एक ही मुद्रा में जरूरत से ज्यादा नहीं रहे ।
यह अनु्भव उसके लिये गहरी पैनी दृष्टि वाला था, और इसने उसे वो अनुभव दिया जिसके लिये वह इच्छुक थी पर उसने उम्मीद पूरी तरह से छोड़ दी थी । इसका महत्व यह नहीं था कि यह स्थिति के लिये 'ठीक' था या स्थिति का 'इलाज' था, बल्कि यह जागरुकता को खोजने के लिये था, जिसने उसमें एक बड़ी गहरी जागरुकता उत्पन्न की, उसका संदर्भ, उसका घटनाचक्र में भाग लेना, तथा उसे एक नया अनुभव भी प्रदान किया । ऐसे नये अनुभव जो गेस्टाल्ट प्रयोगों से निकल कर आते हैं उपाय नहीं हैं, लेकिन एक आदमी के संसार को बड़ा करते हैं, और कुछ करने के लिये शुरुआत का एक नया बिंदु प्रदान करते हैं । जब वातावरण से कुछ नहीं मिलता तो वह एक ठीक होने का अनुभव भी प्रदान करते हैं ।
प्रक्रिया की शुरूआत पृष्ठभूमि के संदर्भ से हुई थी । एक बार वह स्पष्ट हो गया तो हम अभी और यहीं के प्रयोग पर आ गये । इसके लिये उसे यह लगना चाहिये था कि यह किसी 'चाहने वाली चीज' के द्वारा व्यवस्थित नहीं किया गया था, लेकिन वास्तव में यह उसकी लय के बारे में था । उसमें स्वयँ भाग ले कर मैं जहाँ वह थी, उसे क्या आवश्यकता थी, उससे तालमेल बिठा सकता था और उसकी व्यवस्था पर एक सीधी आनुभविक पैनी दृष्टि डाल सकता था ।
इसका ये अर्थ भी था कि मैं नये तरीकों से प्रतिक्रिया कर सकता था । मैंने प्रयोग में बदलाव ला कर 'देने' की तीसरी मुद्रा भी जोड़ दी थी, क्योंकि यह स्पष्टत: अनुपस्थित थी, फिर भी बहुत ही महत्वपूर्ण तत्व थी । इसने उसको किसी के द्वारा बिना अधिक कीमत के दिये जाने का अनुभव भी लेने दिया।
प्रस्तुतकर्ता Steve Vinay Gunther