Case #35 - 35. अपने पूर्व पर क्रोध


मेरिओन ने अपने पूर्व पति के साथ अपने बच्चों के सांझा पालन-पोषण का मुद्दा उठाया. यह स्पष्ट हो गया था कि यह उसकी मुख्य चिंता नहीं थी. इससे अधिक प्रासंगिक था उसकी असहजता और अपने पति के साथ करने वाला अधूरा कार्य.

अधिक विस्तार में जाने से पहले मैंने कहा – जब मैं तुम्हारी तरफ देखता हूँ तो मुझे यह अनुभव होता है जैसे तुम्हारी आँखे मुझे चुभ रही हैं. इससे मुझ पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ता है. तुम्हारे पूर्व पति और मुझ में यह समानता है कि मैं भी एक आदमी हूँ, और मैं सोचता हूँ कि जो शक्ति तुम्हे अपने पति में महसूस होती है, उसमें में कुछ शक्ति मेरे में भी हो सकती है. मैंने उससे पूछा कि उसका मुद्दा क्या था, उसने कहा, गुस्सा.

मैंने उससे पूछा वो किस बात पर गुस्सा थी. उसने अपनी परिस्थितियों के बारे में एक लम्बी कहानी बतानी शुरू कर दी....कुछ देर बाद मैंने दोबारा पूछा: ठीक है, तो आप वास्तव में किस बात पर गुस्सा हैं. उसने मुझे फिर वो लम्बी कहानी सुनानी शुरू कर दी. मुझे उससे कई बार पूछना पड़ा जब तक कि वह स्पष्ट रूप से, सीधे शब्दों में और संक्षेप में नहीं बता पाई कि वो इसलिए गुस्सा थी क्योंकि उसे लगता था कि उसके पूर्व पति ने उसको धोखा दिया था, क्योकि उसने उसे आर्थिक रूप से सहायता देनी बंद कर दी थी ताकि वह अपने व्यापार में पैसा लगा सके. वो इसलिए भी गुस्सा थी कि उसने उससे इसके बारे में झूठ बोला था , उससे और उसके माता-पिता से भी(जो उसके साथ रहते थे).

मैंने कहा, हाँ तुम गुस्सा लगती हो, मैं यह तुम्हारी आँखों में देख सकता हूँ. अब इस समय तुम क्या महसूस रही हो? उसने मुझे कुछ चीजें बतानी शुरू कि जो उसके अपने मूल्यांकन, निष्कर्ष और विचार थे, न कि उसकी भावनाएं. उसने ये जरुर कहा 'मैं अपनी भावनाओं को छुपा रही हूँ'. इसलिए मैंने उससे ये कल्पना करने को कहा कि मै उसका पूर्व पति था और कहा कि 'मुझसे कुछ उगलवाओ.' उसने बताना शुरू किया कि इस स्थिति के लिए वह भी दोषी थी. इसलियें, मैंने उस पर फिर से ध्यान दिया और उसे मुझको सीधे-सीधे इन शब्दों के साथ 'मैं क्रोधित हूँ...' शब्दों के साथ शुरू करके कहने को कहा. अंत में उसने सीधे-सीधे स्वयं को व्यक्त करना शुरू किया, उन चीजों के बारे में बताते हुए जिनकी वजह से उसे गुस्सा था.

मैंने उसकी भावनाओं को स्वीकार किया, ये माना कि कैसे वो अपने गुस्से को देख और सुन सकती थी...और फिर मैंने उसे कैसे आंसुओं में बदलते हुए देखा – और ऐसे में मैं भी उसकी पीड़ा को समझ सकता था. मैं उसके इस खुली अभिव्यक्ति को प्रोत्साहन देता रहा, और वो गुस्से और आंसुओं में अदल-बदल करती रही. जैसे ही उसको महसूस हुआ कि उसकी बात सुनी जा रही थी, उसका अपनी बात सीधे-सीधे कहने के लिए आत्मविश्वास बढ़ गया. बहुत सारी चुप्पी भी थी, जिसमें उसकी भावनाएं भरी हुई थी, और मेरी सरल स्वीकारोक्ति.

मअंत में उसे बहुत हल्का महसूस हुआ, और उसने अपना बहुत सारी पीड़ा और गुस्से से, जो वह अपने तलाक के बाद से ढो रही थी, छुटकारा पा लिया था. इस प्रक्रिया को सफल करने के लिये मुझे हठी होना था, उसकी जागरूकता पर केन्द्रित होना था, प्रयोग में उसके साथ भाग ले कर उसको उसको अनुभव का ज्ञान कराना था, और उसकी कहानी कहने कि आदत को, जो उसका अपनी गूढ़ भावनाओं से बचने करने का तरीका था, छुड़ाना था. मैंने उसे गुस्से को सम्बन्धात्मक तरीके से काबू करना बताया, और उसे स्वयं को व्यक्त करने के लिए समर्थन और प्रोत्साहन दिया...उसे यह महसूस करने में कि ऐसा करना सुरक्षित है, कुछ समय लगा. मैं भी उन चीजों पर नहीं गया जिन्हें वह टालना चाहती थी; और उसे स्वयं ही अनुभव करने के लिये कहा.

इसकी प्रतिक्रिया में मैंने उसका आभार व्यक्त किया जिसके लिये वह अब तक तरस रही थी – उसका इस स्थान पर देखा और सुना जाना. मैं उसका पूर्व पति नहीं था, लेकिन हमारे बीच की अनुभूति इतनी मजबूत थी कि मुझे वह एक नुमाइंदा समझ कर अपनी बात कहने के पश्चात तसल्ली महसूस कर रही थी. शुरुआत में मेरा इस बात को जोड़ना कि मैं भी आदमी था, उसकी भावनाओं को मेरे साथ जोड़ने के लिये काफी था, और मेरी ग्रहणशीलता इस हद वास्तविक थी कि उसे लगा कि यह अभिनय नहीं था.

महत्वपूर्ण यह था कि वह चिल्लाई नहीं, चीखी नहीं, तकिये नहीं मारे, या अपनी आवाज भी ऊँची नहीं की. गुस्सा सम्बन्ध और अपनाने से जाता है, ये आवश्यक नहीं कि नाटकीय चिकित्सा तकनीक से जाये.



 प्रस्तुतकर्ता  Steve Vinay Gunther