Case #38 - 38. औरत जो असफल हो गई


जेम्मा की चिंता असफलता थी. वह हरेक चीज में असफल रहती थी – एक कम्पनी के लिये काम करते हुए उसकी पांच दुर्घटनाएँ हो चुकी थी, दूसरी कम्पनी के लिए काम करते हुए उससे कम्प्यूटर पर गलतियाँ हुई थी, इत्यादि . उसे महसूस होता था कि वह जीवन में असफल थी.

जैसे ही उसने अपनी चिंता बताई, मैं सावधान हो गया. उसने एक के बाद एक कहानी सुनाई, एक में से दूसरी निकलती हुई. वह रुआंसी हो रही थी, बेहोश सी हो रही थी, और मैं यह देख पा रहा था कि मुझे उसके साथ घंटो काम करना पड़ सकता था, बिना किसी नतीजे पर पहुंचे. उसने वो भी समस्याएं बताई जो उसे अपने घर से बाहर निकलेन के बाद अपने माता-पिता के साथ हो रहीं थी, उसे अपने माता-पिता पर बहुत गुस्सा आ रहा था, अपने पिता और उसकी मंशाओं पर उसे शक हो रहा था. स्पष्टत: वह सहायता के लिए बहुत उद्ग्विन थी, और उसकी उद्ग्विनता ने मुझे झंझोड़ दिया था, और मैंने पीछे हटना चाहते हुए भी स्वयं को प्रतिक्रिया करते हुए पाया.

इसलिए मैं यह जानता था कि मुझे सीधे उसके भीतर जाना था, और स्वयं को उसमें भागीदार बनाना था. मैंने कहा चलो हम असफलता से निपटते हैं; यह अभी हो रही है – तुम मेरे साथ पहले ही असफल हो रही हो – तुम्हारी शैली मुझ पर प्रभाव डाल रही है. उसने सिर हिलाया – वो जान चुकी थी कि मैंने प्रतिक्रिया व्यक्त की थी, निस्संदेह उसका जाना-पहचाना अनुभव था.

कोई अगर आत्म-विनाशकारी रूप से अपने को ताले में बंद रखे तो पहला कदम यह होगा कि हम उसकी कहानियां सुनने के बजाय पूर्ण रूप से उसे वर्तमान में ले आयें. और इसे करने का सबसे अच्छा तरीका है कि हम यह देखे कि वह संबंधों में कैसे घुलता-मिलता है.

मैंने फिर उसे मेरे साथ एक छोटी सी गेम खेलने के लिए कहा. मैं चाहता था कि वो अंदाजा लगाये कि उसकी असफलता के बारे में मेरी क्या प्रतिक्रिया थी – हरेक दो अंदाजों के बाद मैं उसे बताऊंगा कि वो सही थी या नहीं.

उसने अंदाजा लगाया कि मैं अपना धैर्य न खोने के लिए पूरी कोशिश कर रहा था. मैंने कहा नहीं. उसने अंदाजा लगाया कि मुझे उसके साथ सहानुभूति महसूस हो रही थी. मैंने कहा नहीं. मैंने उसे बताया कि मुझे उससे चिडचिडाहट हो रही थी.

फिर मैंने उसे ये अंदाजा लगाने के लिए कहा मुझे वह सब कैसा लग रहा था. उसने कहा मैं अपनी भावनाओं को दबा रहा था. मैंने कहा ये थोडा सा ही ठीक था. उसने अंदाजा लगाया कि मैं उसे अपने पेट और छाती में महसूस कर रहा था. फिर मैंने उससे कहा कि वास्तव में मुझे उस पर गुस्सा आ रहा था, और मैं उसे अपनी छाती में एक अंदरूनी दबाव की तरह महसूस कर रहा था.

मैंने उसे वो प्रयोग करने के लिये कहा क्योंकि मैं उसे स्वयं पर दया करने के दलदल से और असफल-सूत्र के पिंजड़े से निकालना चाहता था. मैं उसे यह दिखाना चाहता था कि यह सह-रचित अनुभव था और वो ही एक अकेली नहीं थी जो पीड़ित थी. यह मेरे लिए भी भयंकर था. मैंने उसे भी यह करने को कहा, क्योकि वह स्पष्टत; पागल थी(अपने पिता के कारण), और अंदाजा लगाने के खेल का स्पष्टतया अभ्यास करना एक अच्छी बात थी, और अकेले ही अपनी बातें मानने के बजाय ठीक बात के पता लगने का अवसर मिले.

इसके बाद मैंने उसे सीटें बदलने के लिए कहा. मैं वो बनूँगा और फिर विपरीत क्रम में वैसा ही करूंगा. इसलिए मैं उदास, निरुत्साहित, असफल व्यक्ति की तरह महसूस करते हुए, और वो क्रोधित थी. उसने अपने किरदार में यह नोट किया कि 'मैं अपने माता-पिता कि तरह हूं, भाषण देना, चिल्लाना, आलोचना करना, मुझे नीचा दिखाना, मुझ पर कर के दिखने के लिए दबाव डालना'. यह लाभप्रद था क्योकि, फिर से इसने उसे अपने पहचाने हुए विरोधी भाग से बाहर निकाला, उसे इस चीज का कि क्या हो रहा था ज्यादा प्रायोगिक अनुभव दिया.

फिर मैंने उसे भर्ती की उपमा दी – जैसे कि उसने मुझे स्वयं पर गुस्सा करने के लिए भरती किया था, और यह मैंने इतनी सफलता से किया कि उसे एक मिनट सुनने के मुझे वास्तव में गुस्सा आ गया था. मैंने उसे कहा कि किसी स्तर पर मैं दूसरा पक्ष निभाने के लिए भी सहमत था, और यह मेरा निर्दयी पक्ष था जिससे मैं सहमत था. मैंने उसे विस्तार से बताया कि यह दो व्यकित्यों का खेल था. उसने कहा – वास्तव में जब वह गुस्से वाला खेल खेल रही थी तो उस खेल ने उसे उस दवाब के बारे में याद दिलाया जो उसे उसके दादा-दादी से उसी तरीके से मिलता था. इसलिये, वास्तव में उसका कार्यक्षेत्र इस तरह से संचालित होता था.

मैंने उसे दूसरी उपमा दी: एक पांडुलिपि, और इच्छुक खिलाड़ी की. उसे पांडुलिपि को अपने जीवन के हर क्षेत्र में दोहराना था. वो सहमत हो गई. इसने वो ढांचा बनाया जो कार्यक्षेत्र में हो रहा था, बजाय इसके कि इसे व्यक्तिगत तरीके से किया जाये (उसकी समस्या) और इस व्यावहारिक प्रक्रिया में उसके और उसके आसपास बार-बार होने वाले बलपूर्वक और निर्दयतापूर्ण अनुभव की प्रक्रृति.

फिर मैंने उससे कोई भी ऐसा मशहूर खेल, जिसके चरित्र उसके व्यक्तिगत कार्यक्षेत्र जैसे थे, चुनने के लिए कहा जिसे वह खेल चुकी थी. उसने एक खास नाटक का वर्णन किया जिसके चरित्र वैसे ही थे जिसे हमने सारी प्रक्रिया में जाहिर किया था. फिर मैंने उससे किसी और कहानी का उदाहरण बताने के लिए कहा – कोई फ़िल्म या नाटक, जिसकी पांडुलिपि अलग हो. यहाँ मैं व्यापक रूप से देख रहा था, कार्यक्षेत्र के दूसरे साधनों कि तरफ, दूसरे तरीके से रहने वाले. उसने हैरी पोट्टर को चुना, और जब मैंने पूछा कि वो कौन सा चरित्र बनना चाहती थी, उसने कहा हैरी.

इसलिए मैंने उसे हैरी पोट्टर की तरह देखने को कहा. यह इसलिये था क्योकि जिस तरीके से उसने पीड़ित की सारी पांडुलिपि तैयार की थी – उसने मेरी तरफ एक ख़ास तरीके से देखा था.

उसने इस प्रयोग को आजमाया, और जैसे जैसे हम फ़िल्म में हैरी पोट्टर के स्वभाव को जांचते गये – उसकी न मारे जाने कि क्षमता, इत्यादि उसके रूप में उसमें ज्यादा मजबूती आती गई. उसे अपनी पहचान में एक बदलाव महसूस हुआ, और दूसरी तरफ मैंने उसका दूसरे रूप में अनुभव किया. इस प्रयोग को करने के लिये मुझे उसके साथ बहुत जिद्दी होना पड़ा, और इमानदारी की बात है कि सारे प्रयोग में मैंने संबंध के साथ काम किया, तरह तरह के प्रयोगों के साथ, जिनमें से सबसे आखिरी आधार का बदलाव था ... लेकिन उसमें उन सभी चीजों की आबश्यकता पड़ी जो पहले हुईं थीं



 प्रस्तुतकर्ता  Steve Vinay Gunther