Case #9 - 9. उपाय बताा उपाय नहीं है
जेन का एक किशोर बेटा है । उसे उसको किसी कार्य को करने के लिये प्रोत्साहित करने में दिक्कत होती है और वह इस दुविधा में रहती है कि कैसे उस पर स्कूल में अच्छा करने के लिये जोर डाले या उसे छूट दे कि वह स्वयँ ही अपने स्तर को पा ले । वह इंटरनेट पर बहुत समय गुजारता है । उसने मुझसे इसको सुलझाने के लिये सलाह तथा दिशानिर्देश माँगे ।
निस्संदेह, मुझमें कुछ ऐसा है कि मैं उसे बच्चों की परवरिश के लिये सलाह दे कर प्रसन्न होऊँगा – मैंने भी पाँच बच्चे पाले हैं । मेरे दिमाग में ऐसे बहुत से विचार हैं जो बच्चों की परवरिश के लिये सहायक हो सकते हैं । परन्तु मैंने उसके आमंत्रण को ठुकरा दिया और जैसे-जैसे वो मुझे वस्तुस्थिति के बारे में बताती गई, मैं उसकी भावनाओं पर ध्यान देता गया । वह बच्चों की परवरिश वाली कक्षा के अनुभव को याद करके और यह सोच कर कि उसके बेटे के लिये कुछ भी अच्छा नहीं हो रहा है, इधर-उधर चक्कर काटती है । उसको अपनी भावनाओं के साथ वर्तमान में रखना बहुत मुशिकल है ।
ममैं अपनी कुछ उन भावनाओं के बारे में बात करता हूँ जो मैंने अपने किशोर बच्चों की परवरिश करते समय महसूस की थी । चूँकि वह बैचेन और तनावग्रस्त रहती है, यह बात उसको बात करने के लिये खुलने देती है । लेकिन, ऐसा करते हुए वह मुस्करा रही है । मैं जो कुछ देखता हूँ और सुनता हूँ, अपनी टिप्पणी दे कर उससे पूछता हूँ कि वह अंतर उसको कैसा लगता है ।
वह अपने चेहरे पर खुशी लाने की कोशिश करती है, जबकि वह हमेशा ही चिंतित और उदास रहती है । कुछ हद तक यह उसके लिये काम करता है । इसलिये, मैं अपना ध्यान वर्तमान पर, उसके अनुभव पर लाता हूँ और अपनी उन मुश्किलों के बारे में बात करता हूँ जब मेरे बच्चे उसके बच्चे की उम्र के थे ।
धीरे-धीरे, उसने महसूस करना शुरू कर दिया । मैं उसे और गहरी साँस लेने के लिये कहता हूँ । वह बताती है कि वह खुद को हारा हुआ महसूस कर रही है । मैं उसे यह प्रस्ताव देता हूँ कि हारी हुई स्थिति से बाहर निकलने के लिये कोई उपाय बताने की बजाय मैं कुछ देर तक उसके साथ रहूँ । मैं उसे कहता हूँ कि हम दोनों एक मिनट के लिये उस स्थान पर इकट्ठे रहें । वह सहज हो जाती है और एक अंदरूनी गर्मजोशी महसूस करना शुरू करती है । मैं उसका हाथ उसके पेट की तरफ पसलियों के चारों और देखता हूँ । मैं उसे इस बात से अवगत कराता हूँ । सामान्यतया, वह अपने पेट में बैचेनी तथा तनाव महसूस करती है । अब उसमें गर्मजोशी आ जाती है । अब यह जोड़ने का समय है ।
अंत में मैंने उसे बच्चों की परवरिश के लिये ऐसा नियम बताया जो मैंने सीखा था और जो मेरे लिये बहुत सहायक रहा । अब वह इसे खुले दिल से स्वीकार कर सकती थी, न कि एक बौद्धिक उपाय की तरह ।
यहाँ महत्वपूर्ण यह है कि जो उपाय वह चाहती थी(और कहती रही कि दूसरों ने उसे उपाय बताये थे) उसे बताने के बजाय मैंने उसका विरोध खत्म करके उसको यह कहा कि वह वर्तमान में रहे, अपनी हार में रहे, जो उसे वही रहने देगा जो वह है । इसका केन्द्रबिन्दु संबंधपरक है, न कि व्यवहारवादी ।
प्रस्तुतकर्ता Steve Vinay Gunther