Case #20 - 20 जमा हुआ ढक्कन


जेन को समूह में बाँटने से गुस्सा आता था । वो काँपती हुई आई । वो विषय-वस्तु के बारे में बात नहीं करना चाहती थी, जो ठीक था । हमने केवल उर्जा के ऊपर काम किया । मैंने उसे अपना अनुभव बताने के लिये कहा । उसने जम जाने के बारे में बात की । मैंने उसे एक लक्षण के बारे में बताने को कहा कि वो क्या महसूस करती है । उसने कहा कि एक जमा हुआ ढक्कन । मैंने उसे शरीर का वो हिस्सा दिखाने के लिये कहा जहाँ पर यह था – पेट के निचले भाग में !

मैंने उससे कहा कि वो ऐसे बोले जैसे वो ढक्कन है "मैं एक जमा हुआ ढक्कन हूँ "। उसने वह किया और बताया कि कैसे उसने कोनों को बंद किया । इसलिये मैंने उसे कोने की तरह बोलने के लिये कहा । "मैं एक कोना हूँ…" और फिर उसने कोने के दूसरे पक्ष बताये । मैंने उससे एक हाथ वहाँ रखने के लिये कहा जहाँ जमा हुआ ढक्कन था और दूसरा हाथ वहाँ रखने के लिये कहा जहाँ कोना था (उसके बगल में) । फिर मैंने उसको उन जगहों पर साँस लेने के लिये कहा । इसने उसकी भावनाओं को बढ़ा दिया । उसकी टाँगें काँपने लगी । इसलिये, मैंने उसको प्रोत्साहित किया ।

उसे बहुत उदासी महसूस हुई, वह रोने लगी । वो कुछ बता नहीं पाई । तो मैंने उसे पैरों की अंगुलियों को मोड़ने के लिये कहा । उसे यह बहुत मुश्किल लगा और एक ही पैर कि अन्गुली सकी । थोड़ी देर बाद मेरी सहायता से उसने दूसरे पैर की अंगुलियाँ भी मोड़ लीं । फिर उसने बार-बार डकार लेनी शुरु कर दी । उसने कहा कि उसके साथ यह होता रहता है । शारीरिक रूप से ये एक बहुत अच्छा निकास है, और अभिव्यक्ति की एक शुरुआत है ।

अब ये पक्का था कि उसे अपनी उर्जा बढ़ती हुई लग रही थी, अभी उसके पास शब्द नहीं थे । इसलिये, मैंने उसे शारीरिक निकास के लिये प्रोत्साहित किया और धीरे-धीरे वो अपनी भावनाओं को शब्दों में ढाल पा रही थी । मैंने उसे, ये मान कर कि वह व्यक्ति जिसने उसे चोट पहुँचाई थी वहीं पर है, सीधे तौर पर कहने के लिये कहा ।

यह उसके लिये बहुत सारी पीड़ाओं का अंत था जिसे वो अपने साथ बहुत वर्षों से चुपचाप ले कर चल रही थी । उसे अपनी भावनाओं को लक्षण(ढक्कन, कोना) की तरह व्यक्त करने के लिये कह कर, हम उन लक्षणों पर सीधे-सीधे काम कर सकते थे । उसको उन्हे अपनाने के लिये कह कर उसकी जागरुकता पर ध्यान बढ़ा जो पहले धुंधलाई हुई और उपेक्षित थी – स्वाभाविक रूप से, कोई भी दर्द को महसूस नहीं करना चाहता । अपने शरीर की उर्जा और भावनाओं के साथ रहने में उसकी सहायता करके हमने उसके सोचने की प्रक्रिया को पूरी तरह से उपेक्षित कर दिया और एक स्वाभाविक रूप से उसे खुलने दिया ।

अगर आप शारीरिक प्रक्रिया के साथ रहेंगे तो हमेशा ही ऐसा होगा क्योंकि शरीर हमेशा ठीक होने की दिशा में ही बढ़ता है ।



 प्रस्तुतकर्ता  Steve Vinay Gunther