Case #32 - विश्वसनीय साधन


जडायने के दो मुद्दे थे । पहला मुद्दा यह था कि उसका पहला लड़का, जो 12 वर्ष का था, पढ़ाई में उतनी मेहनत नहीं करता था जितनी कि वह चाहती थी । मैंने उसे पैमाने पर नाप के अनुसार बताने के लिये कहा कि वह कितना अच्छा कर रहा था । उसने बताया कि 6 या 7 । क्या वह अपना गृहकार्य करता था ? हाँ । लेकिन वास्तविकता यह है एक अच्छे स्कूल में दाखिले के लिये किसी बच्चे को बहुत अच्चे नम्बर चाहिये होते हैं, और इसलिये उस पर दबाव बना हुआ था ।

पहले तो मैंने अपने विचारों के अनुसार जवाब दिया - माता-पिता पर आधारित बच्चों के पालन-पोषण पर मे्री धारणाएँ – एक बच्चे के संतुलित जीवन पर मेरी धारणाएँ, और मेरे मूल्य कि शिक्षा के क्षेत्र की उपल्बधियाँ ही अंतिम लक्षय नहीं होती । मेरे लिये अपनी स्थिति को स्पष्ट करना महत्वपूर्ण था, और विचारों में अंतर की सीमाओं को महसूस करना, और यह जानना कि उसे सहायता देने की मेरी इच्छा (और उसकी सीमाएँ) उसके कितने काम आ सकती थी ।

उसमें दवंद चल रहा था, क्योंकि इससे पहले उसने पालन-पोषण पर बहुत सारी पुस्तके पढ़ी थी, और उसके लिये कुछ अपने लिए समय देने की कोशिश की थी, लेकिन वह उसके भविष्य के लिये चिंतित थी, और नहीं जानती थी कि प्रभावपूर्ण ढ़ंग से उसे कैसे प्रेरित करे । इसलिये मेरा प्रस्ताव था कि वह उसके साथ बैठ कर पहले तो यह बताये कि उसके बड़े होने में उसके लिये क्या महत्वपूर्ण था ।

मफिर वह उसको उस वस्तुस्थिति से परिचित करायेगी जिसका वह सामना कर रहा था – एक सामाजिक और स्कूल की व्यवस्था जिसमें बहुत ही ज्यादा प्रतिस्पर्धा थी, और जिसमें विशेष संस्थान में दाखिला लेने के लिये विशेष ग्रेड पाने की आवश्यकता थी । वह भांति-भांति के संस्थानों के बारे में पता लगायेगी, उनकी जरूरतें, तथा उनमें दाखिले के फायदे और नुक्सान के बारे में पता लगायेगी । फिर वह उसको अपना लक्ष्य निर्धारित करने में सहायता करेगी, वह कहाँ तक पहुँचना चाहता था, और यह सब करने के लिये वो क्या करना चाहता था ।

मइस तरीके से वह पूरी तरह से विश्वसनीय हो सकती थी, जबकि साथ ही साथ वह उसे अपना रास्ता पाने के लिये सहायता भी कर सकती थी । उसको सहायता देने के लिये उसकी सहमती और इच्छा को तब उस दिशा में मोड़ा जा सकता था जिसमें उसके द्वारा चुने गये विकल्पों को सहारा मिल सके, बजाय इसके कि वह उसके लिये विकल्प चुने । उसका दूसरा मुद्दा उसके पति के साथ संबंध के बारे में था । वो घर आने बाद बीयर लेता था, अखबार पढ़ता था, अपने ब्लाग पर लिखता था, और उसे व बच्चों को पूरी तरह से अनदेखा कर देता था ।

स्पष्टत:, वह इस स्थिति से खुश नहीं थी, लेकिन इसके लिये कोई रास्ता नहीं ढूँढ सकी थी । बाकी चीजों में, वह पारिवारिक जीवन में भाग लेता था, परिवार को घुमाने ले जाता था, परिवार के साथ समय व्यतीत करता था और कभी-कभी खाना भी बनाता था । वह कोई खास बातचीत करने वाला नहीं था, इसलिये यह कुछ नया नहीं था । मुझे यह स्पष्ट था कि उसको डांटने से, उससे कुछ माँगने से, या फिर यह भी सुझाव देना कि वह उससे कुछ विश्वसनीय तरीके से बात करे प्रभावकारी नहीं होगा ।

मैंने उसके ब्लाग के बारे में पूछा । उसने बताया कि ब्लाग बड़ा ही स्पष्ट और मजेदार था । वह इसमें मजेदार टिप्पणियों के साथ चित्र भी जोड़ता था । उसकी इच्छा होती थी कि काश वह उसके साथ भी वैसे ही बात करे । मेरे लिये रास्ता स्पष्ट था । वह उसे बदलेगी नहीं, परन्तु वह उसका साथ दे सकती थी । मैंने पूछा कि क्या उसके पति के पास आई-पैड़ था । उसने बताया कि वह उसने छुपा दिया था ।

मैंने उससे कहा कि वह उसे तत्काल ही आई-पैड दे दे, और एक अपने लिये खरीद ले । फिर वह उसके साथ लिख कर बातचीत कर सकती थी । वह उसके ब्लाग पर प्रतिक्रिया व्यक्त कर सकती थी (वह उन लोगों को जवाब देता, जो ऐसा करते थे) । वह उसे नोट, पत्र, एक वाक्य भेज सकती थी । जब भी वह अखबार पढ़ रहा होगा, वह उसे छोटी-छोटी टिप्पणियाँ भेज सकती थी । वह पत्र लिख कर और उनको छाप कर डाक द्वारा भेज सकती थी या उसके तकिये के नीचे रख सकती थी ।

इस तरीके से मैं उस चीज का उपयोग कर रहा था जो उपलब्ध थी । यह उसके मन के भीतर की गतिशीलता पर असर नहीं कर रहा था, और मैंने उसकी इस धारणा को, कि वह उस पर इसलिये धयान नहीं दे रहा था कि उसमें कुछ गल्त है, बल देने से इन्कार कर दिया । इसके बजाय मैंने यह देखा कि कहाँ पर साधन उपलब्ध हैं जिनसे वह रचनात्मक रूप से उस से सम्पर्क कर सके ताकि वह संबंध के बंद बक्से से बाहर आ सके ।



 प्रस्तुतकर्ता  Steve Vinay Gunther